कहानी: "चुप्पी की दीवार"
गाँव के एक छोटे से घर में रहती थी सीता, एक बुजुर्ग माँ। उसका इकलौता बेटा रवि शहर में नौकरी करता था। शादी के बाद वह अपनी पत्नी प्रिया को लेकर गाँव आया और माँ के साथ रहने लगा। शुरुआत में सब कुछ ठीक था, लेकिन धीरे-धीरे रिश्तों में दूरियाँ आने लगीं।
प्रिया को सास की पुरानी सोच से परेशानी होती, और सीता को लगता कि बहू उसकी बातों की इज़्ज़त नहीं करती। रवि दोनों के बीच फँसकर चुप रहने लगा। यह चुप्पी धीरे-धीरे रिश्तों के बीच दीवार बन गई।
एक दिन सीता बीमार पड़ गई। डॉक्टर ने बताया कि उसे देखभाल की सख्त ज़रूरत है। रवि काम पर चला गया और प्रिया को माँ की देखभाल के लिए कहा। प्रिया ने कोशिश की, लेकिन पुराने गिले-शिकवे बीच में आ गए। सीता भी कुछ नहीं बोली, पर आँखों से बहता पानी सब कह देता था।
एक रात सीता ने खाँसते-खाँसते दम तोड़ दिया। सुबह जब रवि लौटा, तो माँ की ठंडी पड़ी देह देखकर वह फूट-फूटकर रो पड़ा। उसने प्रिया की ओर देखा — उसकी आँखें भी भीगी थीं, पर अफ़सोस अब बहुत देर हो चुकी थी।
सीता के कमरे में एक पुरानी डायरी मिली — उसमें लिखा था:
"मैं जानती हूँ, प्रिया अच्छी है, पर मैं खुद उसे समझ नहीं पाई। रवि भी बस चुप रहा, शायद मेरी और उसकी दुनिया में फर्क था। लेकिन एक बात ज़रूर है — मैंने सबको दिल से चाहा।"
उस दिन रवि और प्रिया दोनों बहुत रोए, पर अब कोई आवाज़ जवाब देने के लिए ज़िंदा नहीं थी।