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क्या एक पति का पत्नी का साथ देना ग़लत है? जानिए इस भावनात्मक कहानी में जब एक बेटे ने अपनी माँ और पत्नी के बीच संतुलन बनाना सीखा।
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भूमिका (Introduction)
शादी के बाद ज़िंदगी में कई बदलाव आते हैं – रिश्ते नए बनते हैं, पुराने बदलते हैं। लेकिन जब एक बेटा अपनी पत्नी का साथ देने लगे और माँ को यह बात पसंद न आए, तो हालात कैसे बदलते हैं? आइए पढ़ते हैं एक ऐसी ही दिल को छू लेने वाली कहानी – "माँ की नाराज़गी और बेटे का फैसला।"
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कहानी: माँ की नाराज़गी और बेटे का फैसला
राहुल और प्रिया की शादी को अभी कुछ ही महीने हुए थे। राहुल एक सॉफ्टवेयर इंजीनियर था और प्रिया शिक्षिका। दोनों ने प्रेम-विवाह नहीं किया था, फिर भी उनके बीच समझदारी और प्यार था।
प्रिया दिनभर घर के कामों में जुटी रहती, माँ-पिता की सेवा करती और साथ ही शाम को ऑनलाइन ट्यूशन भी लेती। राहुल जब ऑफिस से आता, तो अक्सर रसोई में हाथ बंटाता, या प्रिया के साथ बैठकर आराम से बातें करता।
माँ को यह पसंद नहीं आया
सुमित्रा देवी, राहुल की माँ, इस बदलाव को पचा नहीं पा रही थीं।
"हमारे समय में बहुएँ घर चलाती थीं, अब बेटे ही रसोई में घुसे पड़े हैं!"
उनका ताना हर दिन बढ़ता जा रहा था।
राहुल का जवाब
एक दिन जब माँ ने ताना कसा, राहुल ने शांत लेकिन दृढ़ स्वर में जवाब दिया,
"माँ, पत्नी के काम में हाथ बँटाना गुलामी नहीं, बराबरी है। आपने मुझे सम्मान देना सिखाया है, और प्रिया उसका हकदार है।"
माँ नाराज़ हो गईं। खाना छोड़ दिया, बात करना भी कम कर दिया।
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रिश्तों में आया मोड़
कुछ दिनों बाद माँ की तबीयत बिगड़ गई। प्रिया ने बिना कुछ कहे उनका पूरा ध्यान रखा – डॉक्टर, दवाइयाँ, रात भर की सेवा।
माँ की आँखें खुली तो देखा, प्रिया उनका माथा सहला रही है।
माँ का हृदय परिवर्तन
अगली सुबह, माँ ने पहली बार प्रिया का हाथ पकड़कर कहा:
"बहू, मैं गलत थी। सच्चा बेटा वही है जो पत्नी का भी सम्मान करे।"
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निष्कर्ष (Conclusion)
रिश्तों में तालमेल और समझ सबसे ज़रूरी है। माँ का आदर और पत्नी का समर्थन – दोनों में संतुलन ही एक आदर्श बेटे और पति की पहचान है।